जब आप उसे इतना चाहें, के उसकी ‘चाह’ को अपना लें…
कुछ इस तरह हमने अपना इशक निभा लिया,
उसकी ‘पसंद’ को थोड़ा, जब अपनी बना लिया,
माथे की सिलवट… मुसकान में बदलती चली गई,
‘उसने’ गले लगा कर जब अपनी सहेली बना लिया,
जानी पहचानी सी खुशबू , थी उसके एहसास में,
मोहबत मेरी सी ही थी, बस नया चेहरा था लगा लिया,
‘पसंद’ उसकी अब बेहतर मालूम पङती है,
इक ‘मतलबी’ चाहत खोकर, मैनें दो दोसतों को है पा लिया ।!
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